A Review Of Shiv chaisa

सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ जय शिव…॥

किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी॥

शिव आरती

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पण्डित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे ॥

प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला। जरे सुरासुर भये विहाला॥

मंत्र महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम् - अयि गिरिनन्दिनि

शिव पूजा में सफेद चंदन, चावल, कलावा, धूप-दीप, पुष्प, फूल माला और शुद्ध मिश्री को प्रसाद के लिए रखें।

महाभारत काल से दिल्ली के प्रसिद्ध मंदिर

सुर ब्रह्मादिक पार न पाय ॥ जो यह पाठ करे मन लाई ।

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मुण्डमाल तन क्षार लगाए ॥ वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे ।

अर्थ: हे अनंत एवं नष्ट न होने वाले अविनाशी भगवान भोलेनाथ, सब पर कृपा करने वाले, सबके घट में वास करने वाले शिव शंभू, आपकी जय हो। हे प्रभु काम, क्रोध, मोह, लोभ, अंहकार जैसे तमाम दुष्ट मुझे सताते रहते हैं। इन्होंनें मुझे भ्रम में डाल दिया है, जिससे मुझे शांति नहीं मिल पाती। हे स्वामी, इस विनाशकारी स्थिति से मुझे उभार लो यही उचित अवसर। अर्थात जब मैं इस समय more info आपकी शरण में हूं, मुझे अपनी भक्ति में लीन कर मुझे मोहमाया से मुक्ति दिलाओ, सांसारिक कष्टों से उभारों। अपने त्रिशुल से इन तमाम दुष्टों का नाश कर दो। हे भोलेनाथ, आकर मुझे इन कष्टों से मुक्ति दिलाओ।

शिव चालीसा के more info सरल शब्दों से भगवान शिव को आसानी से प्रसन्न किया जा सकता है।

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